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अब कैसे लौट जाऊं बीच राह से आखिर मंजिल को भी आस होगी ... कोई राही आता तो होगा ।। _प्रेमकवि_ ©Hari Creations official

#हिंदी_कोट्स_शायरी #मोटिवेशनल #राही #banarasfilms #iharinyadav  अब कैसे लौट जाऊं बीच राह से
आखिर मंजिल को भी आस होगी ...
कोई राही आता तो होगा ।।
_प्रेमकवि_

©Hari Creations official
#Sad_Status #लव  White mai akela chala tha, tere intjar mai, ki tu mil जायेगी aur ham sath chalenge ज़िंदगी भर, naa तू aaiyee naa jeendagi.....

©Urmeela Raikwar (parihar)

#Sad_Status अmit कोठारी "राही" Pyare ji @Gaurav Prateek @Madhusudan Shrivastava @Devesh Dixit

225 View

White l#डर_जाता_हूं_मैं डर जाता हूं मैं छोटी छोटी खुशियों से खुश होने वाला नादां बनकर यूं सबसे खूब ठिठोले करता हूं मगर पराई बातों से और यू अपनों की तानों से बिखर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। तुलना खुद से करके किसी और की खुशियां दर्द को दवा बनाकर ऐसे निखर जाता हूं मगर दुनियां की रंगत से कुछ अनचाहे संगत से यूं ठहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। सबकी बातें सुन लेता ना कोई शिकायत करता हूं जब अपने ही न एक रहे रिश्ते नाते ना नेक रहे दिल मे कुटिल खेल को देख ऐसे सिहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। जीवन में दमन दाम का खेल ढलते सूरज से शाम का मेल न शाम सुहानी होती है न रात, रात को सोती है फिर भी प्रात: का मेल अरुण से देख संवर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। ~Aakash Dwivedi ✍️ #कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त ©Aakash Dwivedi

#दोस्त #अजनबी #कविता #शायरी #AakashDwivedi #अपने  White l#डर_जाता_हूं_मैं

डर जाता हूं मैं 
छोटी छोटी खुशियों से 
खुश होने वाला
नादां बनकर यूं सबसे
खूब ठिठोले करता हूं 
मगर पराई बातों से और 
यू अपनों की तानों से 
बिखर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
तुलना खुद से करके
किसी और की खुशियां 
दर्द को दवा बनाकर 
ऐसे निखर जाता हूं
मगर दुनियां की रंगत से 
कुछ अनचाहे संगत से 
यूं ठहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
सबकी बातें सुन लेता 
ना कोई शिकायत करता हूं 
जब अपने ही न एक रहे 
रिश्ते नाते ना नेक रहे 
दिल मे कुटिल खेल को देख 
ऐसे सिहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
जीवन में दमन दाम का खेल 
ढलते सूरज से शाम का मेल 
न शाम सुहानी होती है 
न रात, रात को सोती है 
फिर भी प्रात: का मेल अरुण से 
देख संवर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।

  ~Aakash Dwivedi ✍️ 

#कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त

©Aakash Dwivedi
#शायरी

मशहूर @@_hardik Mahajan Pyare ji Yash Mehta अmit कोठारी "राही" करम गोरखपुरिया

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गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

17 Love

अब कैसे लौट जाऊं बीच राह से आखिर मंजिल को भी आस होगी ... कोई राही आता तो होगा ।। _प्रेमकवि_ ©Hari Creations official

#हिंदी_कोट्स_शायरी #मोटिवेशनल #राही #banarasfilms #iharinyadav  अब कैसे लौट जाऊं बीच राह से
आखिर मंजिल को भी आस होगी ...
कोई राही आता तो होगा ।।
_प्रेमकवि_

©Hari Creations official
#Sad_Status #लव  White mai akela chala tha, tere intjar mai, ki tu mil जायेगी aur ham sath chalenge ज़िंदगी भर, naa तू aaiyee naa jeendagi.....

©Urmeela Raikwar (parihar)

#Sad_Status अmit कोठारी "राही" Pyare ji @Gaurav Prateek @Madhusudan Shrivastava @Devesh Dixit

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White l#डर_जाता_हूं_मैं डर जाता हूं मैं छोटी छोटी खुशियों से खुश होने वाला नादां बनकर यूं सबसे खूब ठिठोले करता हूं मगर पराई बातों से और यू अपनों की तानों से बिखर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। तुलना खुद से करके किसी और की खुशियां दर्द को दवा बनाकर ऐसे निखर जाता हूं मगर दुनियां की रंगत से कुछ अनचाहे संगत से यूं ठहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। सबकी बातें सुन लेता ना कोई शिकायत करता हूं जब अपने ही न एक रहे रिश्ते नाते ना नेक रहे दिल मे कुटिल खेल को देख ऐसे सिहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। जीवन में दमन दाम का खेल ढलते सूरज से शाम का मेल न शाम सुहानी होती है न रात, रात को सोती है फिर भी प्रात: का मेल अरुण से देख संवर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। ~Aakash Dwivedi ✍️ #कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त ©Aakash Dwivedi

#दोस्त #अजनबी #कविता #शायरी #AakashDwivedi #अपने  White l#डर_जाता_हूं_मैं

डर जाता हूं मैं 
छोटी छोटी खुशियों से 
खुश होने वाला
नादां बनकर यूं सबसे
खूब ठिठोले करता हूं 
मगर पराई बातों से और 
यू अपनों की तानों से 
बिखर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
तुलना खुद से करके
किसी और की खुशियां 
दर्द को दवा बनाकर 
ऐसे निखर जाता हूं
मगर दुनियां की रंगत से 
कुछ अनचाहे संगत से 
यूं ठहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
सबकी बातें सुन लेता 
ना कोई शिकायत करता हूं 
जब अपने ही न एक रहे 
रिश्ते नाते ना नेक रहे 
दिल मे कुटिल खेल को देख 
ऐसे सिहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
जीवन में दमन दाम का खेल 
ढलते सूरज से शाम का मेल 
न शाम सुहानी होती है 
न रात, रात को सोती है 
फिर भी प्रात: का मेल अरुण से 
देख संवर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।

  ~Aakash Dwivedi ✍️ 

#कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त

©Aakash Dwivedi
#शायरी

मशहूर @@_hardik Mahajan Pyare ji Yash Mehta अmit कोठारी "राही" करम गोरखपुरिया

135 View

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

17 Love

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