करोलबाग के पास गोलचक्कर पे
आज एक गरीब का बच्चा जो कि
एकदम फटे मैले कपड़े पहने हुए
नंगे पैर सड़क किनारे पे बैठा था
उसकी हालत कह रही थी कि वो
अपने हाल पर परेशान हो कर
आत्म हत्या भी कर ले तो कोई
अतिशयोक्ति वाला कदम नहीं
होगा। मगर वो बच्चा इसके
एकदम विपरीत एकदम अंदर
तक खुश था। और खुश ही नहीं
था बल्कि उसका हंसता चेहरा
राह चलतों के चेहरों पर भी
मुस्कान बांट रहा था ।
ठीक उसी वक्त मैंने एक सज्जन
को अपनी BMW गाड़ी में हजारों
रूपए के कपड़े डाले,काला चश्मा
लगाए, लाख रुपए से ऊपर का
फोन कान पर लगा कर परेशान,
बैचेन चिल्लाते हुए देखा। मेरे
दिल से एक ही बात निकली खुश
रहने के पैसे नहीं लगते।
खुश रहना अकारण हो सकता है
जबकि दुःख हमेशा कारणवश ही
पैदा होता है ।
जिंदगी में पैसे भले दो कम कमाओ
मगर खुश रहने की कला सीखो।
खुश रहना ही असल में जिंदगी है।
©_बेखबर
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