दोहा :-
जबसे बन्द प्रणाम है, सब कुछ हुआ विराम ।
रिश्ते आज प्रमाण हैं , सम्मुख है परिणाम ।।
भजता आठों याम हूँ , जिनका हर पल नाम ।
वे ही सुधि लेते नहीं , कण-कण में है धाम ।।
हर पल तेरी ही शरण , रहता हूँ घनश्याम ।
कर दे अब कल्याण तो , मन में लगे विराम ।।
सुन लो इस संसार में , दो ही प्यारे नाम ।
पहला सीता राम है , दूजा राधेश्याम ।।
जीवन रक्षक आप हैं , जीवन दाता आप ।
फिर बतलाएँ आप प्रभु , होता क्यूँ संताप ।।
वह मेरा भगवान है , यह तन है परिधान ।
बस इतना ही जानता , यह बालक नादान ।।
डाल बाँह बीवी गले , भूल गये वह फर्ज ।
अब तो माँ के दूध का , याद नही है कर्ज ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
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