White अरे तुम सुसुप्त से प्रदर्शित होते हो
,लेखनी मुरझाई सी लगती है
क्या लिखे इसी सोच में
,बड़ी अलसाई सी लगती है
विरह बचा है या श्रृंगार का संयोग वियोग
अलंकृत होते होते संधियां हो जाती
अनकही बातों और मासूम मुस्कुराहट
इतर के चक्कर में तितर बितर हो जाती
निहारती कभी नहर या जलकुंभी
ये जीवन की परछाई सी लगती है
मैं में अहम हैया बिखर रहा
भरी ओज है पर तडप रहा
कपाट के पीछे से आवाज आती
दंभी समाज के दर्पणों के चक्कर में पडें
सारे मायने अब खोते खोते
जीवन की सच्चाई भरी दुपहरी सी
देखा है छोटे से बडे होते होते
आशा है या उन्माद बचा है
खोई अस्मिता या कायम है
तुच्छ या वृहद प्रमाण बचा है
बड़ी होती बातें जहां जहां
मुरझाये से प्रसून उपवन के
मन झूम उठे निर्झल भाव से
ऐसी अब सेवा भाव कहां
©Shilpa Yadav
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