मैं लिखूं इश्क़ तुम पढ़ लेना ,मैं लिखूं दर्द तुम सह लेना
जब सहा न जाये दर्द तुम्हे ,आँखों से अपनी कह देना
क्या इश्क़ लिखूं मैं शब्दों से ,या कह दूं अपने लफ्जों से
न ज्ञान है मुझको शब्दों का ,न ज्ञान है मुझको लफ़्ज़ों का
क्या शब्द पढाओगी मुझको ,या लफ्ज़ सिखाओगी मुझको
इश्क़ नही आता मुझको ,क्या इश्क़ सिखाओगी मुझको
लिखा इश्क़ पर लिख न सका ,जो लिखा गया वो पढ़ न सका
है इश्क़ ये क्या न समझ सका ,जो आया समझ वो कह न सका
मायके की चिट्ठी
आज वो बड़ी खुश थी,
मानो लंबे पतझड़ के बाद रिमझिम फुआर छाई थी,
खुशी खुद ही उसके दरवाजे पर दस्तक देने आई थी ।
नीले कागज पर बड़ी बन ठन के उतरी थी,
दरअसल ये कोई और नहीं, उसके मायके की चिट्ठी थी ।
और ये आज नहीं, दो रोज़ पहले आई थी,
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