रहती थी वो हमारे ही शहर में
पर ना हुई उनसे वस्ल कभ
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रहती थी वो हमारे ही शहर में पर ना हुई उनसे वस्ल कभी कुछ ना मांगा है उस खुदा से हमने मिले हमे भी तक़ाज़ा-ए-अद्ल कभी ख्वाइश थी बस एक छोटी सी हमारे की हो उन्हें हमसे मोहब्बत अस्ल कभी फासले तो बोहोत थे हमारे बीच पर पैदा ने हो दरारों की नस्ल कभी

#poem  रहती थी वो हमारे ही शहर में
पर ना हुई उनसे वस्ल कभी
कुछ ना मांगा है उस खुदा से हमने
मिले हमे भी तक़ाज़ा-ए-अद्ल कभी
ख्वाइश थी बस एक छोटी सी हमारे
की हो उन्हें हमसे मोहब्बत अस्ल कभी
फासले तो बोहोत थे हमारे बीच
पर पैदा ने हो दरारों की नस्ल कभी

रहती थी वो हमारे ही शहर में पर ना हुई उनसे वस्ल कभी कुछ ना मांगा है उस खुदा से हमने मिले हमे भी तक़ाज़ा-ए-अद्ल कभी ख्वाइश थी बस एक छोटी सी हमारे की हो उन्हें हमसे मोहब्बत अस्ल कभी फासले तो बोहोत थे हमारे बीच पर पैदा ने हो दरारों की नस्ल कभी

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