रहती थी वो हमारे ही शहर में पर ना हुई उनसे वस्ल कभी कुछ ना मांगा है उस खुदा से हमने मिले हमे भी तक़ाज़ा-ए-अद्ल कभी ख्वाइश थी बस एक छोटी सी हमारे की हो उन्हें हम.
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