आ अब गांव चलते हैं धुल बुकनी पर सनकतें हैं घटाओं सा मचलतें हैं महंगे फिज़ाओं से कहीं दूर कुदरतें वादियों में चलते हैं । आ अब गांव चलते हैं हंसरतें हंसी करत.
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