ये बारिश, ये फूल,
ये हवाओं का आँचल
ये सर्दियाँ, ये
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ये बारिश, ये फूल, ये हवाओं का आँचल ये सर्दियाँ, ये, पतझड, ये तपन ये सावन की हरियाली के पल ये नदियाँ, ये पहाड़ ये पक्षियों का कलरव, कोलाहल हमने पाया है तुमसे शायद बिना कर्म के तुम जीवन दायिनी हो और हम? हम आदत से मजबूर हैं हम उस मजबूरी में भी मगरूर हैं आज तुम्हें बचाने को लिखेंगे कल फिर हम ही यही दोहरायेंगे आज हम प्रण करेंगे कल फिर हम भूल जायेंगे फिर ये वादे, ये प्रण, ये झूठे ग्यान ये हम क्यूं करें, क्यूं लिखें? ©️shweta ambar

#WorldEnvironmentDay #poem  ये बारिश, ये फूल,
ये हवाओं का आँचल
ये सर्दियाँ, ये, पतझड, ये तपन
ये सावन की हरियाली के पल
ये नदियाँ, ये पहाड़ 
ये पक्षियों का कलरव, कोलाहल
हमने पाया है तुमसे
शायद बिना कर्म के
तुम जीवन दायिनी हो और हम?
हम आदत से मजबूर हैं
हम उस मजबूरी में भी मगरूर हैं 
आज तुम्हें बचाने को लिखेंगे
कल फिर हम ही यही दोहरायेंगे
आज हम प्रण करेंगे 
कल फिर हम भूल जायेंगे
फिर
ये वादे, ये प्रण, ये झूठे ग्यान
ये हम क्यूं करें, क्यूं लिखें? 


©️shweta ambar
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