मिल रही मन दहलीज़ से नज़रें उजास की।
चाशनी में घुल र
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मिल रही मन दहलीज़ से नज़रें उजास की। चाशनी में घुल रही बेबाकियाँ अहसास की। महकती है साँसों में मिलन की भीनी सुगंध। चहक आस मधुप ख़्वाब में छिटकते मकरंद। छन रही है दूरियाँ दबे पाँव खुद ही देखिये। पग रहा है प्रेम धीमी आँच पे विश्वास की। ©Smriti_Mukht_iiha🌠

#poem  मिल रही मन दहलीज़ से नज़रें उजास की।
चाशनी में घुल रही बेबाकियाँ अहसास की।
महकती है साँसों में मिलन की भीनी सुगंध।
चहक आस मधुप ख़्वाब में छिटकते मकरंद।
छन रही है दूरियाँ दबे पाँव खुद ही देखिये।
पग रहा है प्रेम धीमी आँच पे विश्वास की।

©Smriti_Mukht_iiha🌠

नवरच!

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