कभी हादसात तो कभी मुकद्दर की कहानी बन जाती है, मोहब्बत के वाकियात यूॅं वक़्त की रवानी बन जाती हैं। ज़ज़्बा ए हुस्न पर यूॅं इस कदर एत्माद न कर ए ज़फ़र ख्वाब जब.
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