आत्मउन्नति की खातिर, वैरागी होना अच्छा है, स्वाभिमान को खोने से तो, त्यागी होना अच्छा है, ऋषिवर दयानन्द से हमने, केवल इतना सीखा है, चाटुकार बन जाने से तो, बागी.
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