पत्नी:-
देखी हैं मैंने, 
ढेरों उजड़ी बस्तियाँ 
प्या
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पत्नी:- देखी हैं मैंने, ढेरों उजड़ी बस्तियाँ प्यारे, सुनहरे ख़्वाबों की। छोड़ भी दो न तुम पति मेरे बहुत बुरी है लत शराबों की। पति:- छोड़ अगर दूँ इस लत को तो कैसे मैं रह पाऊँगा। एक घूँट गर गले न उतरे उस दिन मैं मर जाऊँगा। पत्नी:- सपने टूटे, अपने छूटे, ख़ुद भी टूट चुकी हूँ मैं। अपनी आबरू अपने हाथों से मानो लूट चुकी हूँ मैं। पति:- अब तो चाहे जान ही जाए कोशिश करके सम्भलूँगा। तेरी आबरू बचाने की ख़ातिर ख़ुद को अब से बदलूँगा। ©abhi sagar

 पत्नी:-
देखी हैं मैंने, 
ढेरों उजड़ी बस्तियाँ 
प्यारे, सुनहरे ख़्वाबों की।
छोड़ भी दो न 
तुम पति मेरे
बहुत बुरी है लत शराबों की।

पति:-
छोड़ अगर दूँ 
इस लत को
तो कैसे मैं रह पाऊँगा।
एक घूँट गर 
गले न उतरे
उस दिन मैं मर जाऊँगा।

पत्नी:-
सपने टूटे,
अपने छूटे,
ख़ुद भी टूट चुकी हूँ मैं।
अपनी आबरू 
अपने हाथों से 
मानो लूट चुकी हूँ मैं।

पति:-
अब तो चाहे 
जान ही जाए
कोशिश करके सम्भलूँगा।
तेरी आबरू 
बचाने की ख़ातिर
ख़ुद को अब से बदलूँगा।

©abhi sagar

पत्नी:- देखी हैं मैंने, ढेरों उजड़ी बस्तियाँ प्यारे, सुनहरे ख़्वाबों की। छोड़ भी दो न तुम पति मेरे बहुत बुरी है लत शराबों की। पति:- छोड़ अगर दूँ इस लत को तो कैसे मैं रह पाऊँगा। एक घूँट गर गले न उतरे उस दिन मैं मर जाऊँगा। पत्नी:- सपने टूटे, अपने छूटे, ख़ुद भी टूट चुकी हूँ मैं। अपनी आबरू अपने हाथों से मानो लूट चुकी हूँ मैं। पति:- अब तो चाहे जान ही जाए कोशिश करके सम्भलूँगा। तेरी आबरू बचाने की ख़ातिर ख़ुद को अब से बदलूँगा। ©abhi sagar

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