मन की आखों से देखों क्योंकि कुएं में एक मेढ़क रहता था, उसने सिर्फ यही दुनिया देखी थी। आकाश भी उतना ही देखा था,जितना कुए के अंदर से दिखाई देता है, इसलिए उसकी सोच का दायरा छोटा था तभी अचानक नीचे पानी के रास्ते से वहां समुद्र की एक छोटी सी मछली आ पहुंची तो उन दोनों की बातचीत हुई ।मछली ने पूछा कि तुम्हें पता है समुद्र कितना बड़ा है?मेंढक ने एक छलांग लगाई और बोला इतना होगा मछली बोली नहीं,कि बहुत बड़ा है। मेढ़क ने फिर एक किनारे से आधे हिस्से तक छलांग लगाई बोला उतना होगा फिर मछली बोली कि नहीं।अबकी बार मेंढक ने अपना पूरा जोर लगाते हुए एक सिरे से दूसरे सिरे तक छलांग लगाई और बोला इससे बड़ा हो ही नहीं सकता,मछली बोली नहीं समुद्र इससे बहुत बड़ा है। मेढ़क को विश्वास ही नहीं हुआ,उसको लगा कि मछली झूठ बोल रही है। दोनों ही अपनी -अपनी जगह सही थे अंतर था तो उनकी सोच में मेंढक की सोच थी जिस वातावरण में रहता था ठीक वैसी ही थी।जिस माहौल में हम रहते है ,हमको लगता है,यही जीवन की सच्चाई है,लेकिन हम गलत हैं।हमें अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा और मछली की बात से सीखना होगा।हम जीवन में उतारते हैं तो यकीनन हमारी सोच का दायरा बढ़ने के साथ-साथ हम भी आगे बढ़ते रहेंगे।
©S Talks with Shubham Kumar
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here