इतना प्यार मत कर ऐ मुसाफिर रास्तों से ये जालिम मोहबत्त राह में कांटे बहुत बिछाती है... चुभ गया जो कांटा तुझे,दर्द भूल ना पाएगा बहुत आगे बढ़ रहा है,वापस लौट भी.
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