दीवारों के रंग हुए फीके
रंगत तेरी ढलने से,
कोने भी जैसे बंजर हैं
हँसी ना तेरी खिलने से,
घर यह वीरान हुआ
तेरे लबों के सिलने से,
ये तस्वीरें भी कम्बख्त कुछ नहीं बोलती
कब तक देखें तस्वीर तुम्हारी,
चलो अब ख़ामोशी तोड़ भी दो
अरसा हुआ आवाज़ सुने तुम्हारी।।
©Pawan Shah
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here