आँखों में पानी था, नज़रें थीं गहरी,
वो खड़ा आईने में, खुद से था बेखबर।
उसकी परेशानी का आलम, ना था कोई सानी,
आईने में जो दिखा, उसे ना थी बात मानी।
वो शख्स आईने में, खुद को तलाशता रहा,
अपने अक्स में वो, खुद को ही तलाशता रहा।
आँखों का पानी, उसकी बेबसी का था गवाह,
आईने में खड़ा वो, अपनी ही सोच में था तबाह।
उसकी आँखों में था, एक अजीब सा डर,
आईने में उसका अक्स, लगता था बेहद अधूरा।
वो खुद से पूछता, क्या यही है मेरा सुरूर?
आईने में खड़ा वो शख्स, था अपने आप में मजबूर।
©Love Joshi
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