"कि झूमा करती थी जिन शाखों पे अमराई, अब उनके दिन दरख्तो से बिछड़ने को आ गए। दिन, महीने, साल गुजरे होंगे जिन के गले लग के, ली है करवट बिछड़न ने और सितम ने ली अ.
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