ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फिज़ा में आप बसा रखे हैं। तो रेत क्यों दूं उंगलियों के ऊबड़ खाबड़.
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