रविवार
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 रविवार" को भी मोहलत नहीं,
इससे अच्छा "बेरोजगार" ही सही,
अब मुझे स्वयं से "नफरत" होने लगी,
मैं जिससे "मौहब्बत" किया करता,
विद्घाता से "फरयाद" किया करता,
अब उसी के लिए मुझे "फुरसत" नहीं,
अब मुझे "शर्म" आती हैं उससे,
वो मेरा "बेशबरी" से इंतजार करती है,
मरने को भी "वक़्त" नहीं,
किस्मत भी मेरे साथ कैसा "व्यवहार" करती है,
पल - पल मेरे सीने में "आग" जलाती" है,
सोनिया" कलम रोक ले,
तू  क्यों इतना मेरा "हिसाब" लगाती है।।

©Soni

#paani ##कविता

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