याद आती हैं अक्सर वो रातें, मुलाकाते,वह अनकही बाते, और एक तेरा चेहरा है जो आंखों से हटता ही नहीं।
आए कोई मेरे पहलू में, आंखों में चाहत का रंग और हाथ में खंजर लिए ही सही।
चुभो के सीने में मेरे वो कहे दर्द हुआ कि नहीं।
मेरी आह भी न निकले, उसे दया भी न आए, मै कहूं इस दर्द से ज्यादा कोई मजा ही नहीं।
और वो हंसते हुए कहे तेरा झूठ भी सही मेरा करम भी हंसी।
सुना है टूटे हुए दिलों की हर फरियाद सुनता है खुदा, लेकिन लगता है उसे भी दर्द ए दिलों का एहसास हुआ ही नहीं।
©नवनीत ठाकुर
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