किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च। दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्॥ बहुत कहने से क्या करोडों शास्त्रों से भी क्या चित्त की परम शान्तिः, गुरु.
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