के वो इतराता बहोत था ख़बर थी मुसकुराहट पर मिटी मैं थी के वो सोच के घबराता बहोत था मांग न बैठूं कोई हक़ उस पर के वो शरमाता बहोत था मैं जानती थी वो मेरा हो नहीं स.
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