शीर्षक-तो पूछते..!



मिलने आता वो दहशतगर्द तो पूछ
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शीर्षक-तो पूछते..! मिलने आता वो दहशतगर्द तो पूछता, कि तेरे हाथों, बातों आंखों से निकल रहे उत्पात का क्या है ख़ाक....?, क्यों कि किसी के होंठों पर बसेरा तो मेरा था, छीन तू क्यों ले गया, डाली नोच खाई तूने फिर भी तू उसे आजाद क्यों न किया , तकलीफ़ के समुद्र के किनारे रख तो दिये थे। पर मौत ही दे देते, एक गोली में जान की दीवारें भी तो बिखर जाते हैं, वो चादरें, जिनमें लिपटी हुई मिलती थी, सिर पर पर्दा, हसीं सितम वो ढाती थी। पर तुने उस पर्दानशीन को बेपर्दा क्यों किया। ..? ©Dev Rishi

#कविता #तो  शीर्षक-तो पूछते..!



मिलने आता वो दहशतगर्द तो पूछता, 
कि तेरे हाथों, बातों आंखों से निकल रहे उत्पात का क्या है ख़ाक....?, 
क्यों कि किसी के होंठों पर बसेरा तो मेरा था,
 छीन तू क्यों ले गया, डाली नोच खाई तूने
  फिर भी तू उसे आजाद क्यों न किया ,
 तकलीफ़ के समुद्र के किनारे रख तो दिये थे।

 पर मौत ही दे देते, एक गोली में जान की दीवारें भी तो बिखर जाते हैं,  
वो चादरें, जिनमें लिपटी हुई मिलती थी, 
सिर पर पर्दा, हसीं सितम वो ढाती थी। 
पर तुने उस पर्दानशीन को बेपर्दा क्यों किया।  ..?

©Dev Rishi

प्यार पर कविता , #तो पूछते।

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