देखकर नब्ज मेरी बोल पड़ा वो हकीम भी सारे बीमारियां लिए फिरते हो बिना काम ही कौन कम्बख्त चाहता है दर्द सहना ऐ हकीम वजह है कुछ अपनें परायों की मेहरबानी ही ©'लेख'.
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