अगर मैं इंसान हूं तो एतराज़ भला क्यों हो मज़हब से और इंसान तो वही है जो हर मज़हब में रब देखता है पर इंसान बेहद ग़म-ज़दा है शर्मसार सा है उन सब से जो इंसान में.
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