यादें छोड़ जाते हैं
न जाने क्यों मुख मोड़ जाते हैं,
कुछ परिंदे यूं उड़ते हैं..
कि यादें ही यादें छोड़ जाते हैं।
एक अजीब सा गमगीन मुखौटा,
हमारे मुख पर ताउम्र के लिए ओढ़ जाते हैं,
हर उम्मीद, हर रिश्ता तोड़ जाते हैं,
कुछ परिंदे यूं उड़ते हैं
कि यादें ही यादें छोड़ जाते हैं।
जिंदगी भर ग़म और खुशी में पड़े रहते हैं,
हर मुश्किल में डटकर अड़े रहते हैं,
इक दिन लग गए पंख इनको तो उड़ पड़ते हैं,
और हम अपना गुज़ारा नम आंखों से करते हैं
साथ छूट जाता है हमेशा के लिए,
और फिर बस तस्वीरों में साथ खड़े रहते हैं,
जीवन का रस्ता इक रोज़ मोड़ जाते हैं,
मौत से अपना नाता जोड़ जाते हैं,
कुछ परिंदे यूं उड़ते हैं
कि यादें ही यादें छोड़ जाते हैं
जीवन–मृत्यु का ये सिलसिला तो चलता रहता है क्रमवार
लोग हजारों जन्म लेते हैं बारंबार
लेकिन ये ढांचा फिर से मिलता कहां है,
उपवन का ये पुष्प दोबारा खिलता कहां है।
हमारे दामन की खुशियों का गला मरोड़ जाते हैं,
आंखों के दरिया को कपड़े की तरह पूरा निचोड़ जाते हैं।
कुछ परिंदे यूं उड़ते हैं..
कि यादें ही यादें छोड़ जाते हैं।।
©Deepa Ruwali
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