हे मनुष्य,,, माया संतो( ज्ञानीयों ) के यहां दासी बनकर रहती है l और साकठ अज्ञानी के सिर पर मुकूट बनकर रहती है, माया अज्ञानी से मान चाहती है, परंतु संतो के यह.
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