सृजन किया जिसने जिवन का,
फिर भी अपमान सहती है।
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सृजन किया जिसने जिवन का, फिर भी अपमान सहती है। पीड़ा अनंत सहकर भी वो, कोख में तुमको रखती है। अपनी चिंता छोड़कर देखो, वो माँ का रूप लेती है, फर्क नहीं संतान में कोई, बस ममता अपार देती है। वंश बेल जो है कुल की, तुम उसको काट गिराते हो। बेटे की चाहत में आकर, तुम बेटी की बलि चढाते हो। फिर क्यों? तुम नवरात्र मनाते हो। ©Ritika Vijay Shrivastava

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फिर भी अपमान सहती है।
पीड़ा अनंत सहकर भी वो, 
कोख में तुमको रखती है।
अपनी चिंता छोड़कर देखो, 
वो माँ का रूप लेती है,
फर्क नहीं संतान में कोई, 
बस ममता अपार देती है।
वंश बेल जो है कुल की,
तुम उसको काट गिराते हो।
बेटे की चाहत में आकर, 
तुम बेटी की बलि चढाते हो।
फिर क्यों? तुम नवरात्र मनाते हो।

©Ritika Vijay Shrivastava

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