अनुपमा
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रचते रहो नवकृति मनोहर बनके जग की प्रेरणा..
प्रेरित करो मानसहृदय सत्कर्म,सद्गुण से सदा..
कर्तव्य पथ पर बढ़ चलो संघर्ष नित करते चलो..
तुमसे प्रकाशित जग हो सारा नित्य नव कृत कर चलो..
लिख दो जरा अपनी कलम से वीरगाथा वीर की..
चलते रहे सद्मार्ग पर विचलित नही वो धीर की..
श्रृंगार पर, अवतार पर, मनुहार पर लिखते रहो..
अपनी कलम की शक्ति से इंसानियत रचते रहो..
मातृत्व पर, पितृत्व पर,भातृत्व पर मित्रृत्व पर..
हर मर्म पर लिखते रहो लिखते रहो कर्तव्य पर..
धरती गगन उपवन पवन सरिता जलधि वृष्टि सुमन..
कर दो विव्हल पाषाण हिय श्रद्धा से भर जाये नमन..
तुम दीप बन, हर लो तिमिर बन सूर्य आभा भोर से..
फहरे पताका विश्व में यशगान से जय घोष से..
तुम पर,अटल विश्वास है तुम पावनी तुम निर्मला..
ना भूत में ना भविष्य में, होगा ना तुम साअनुपमा..
©अज्ञात
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