चार कंधे हमें जब उठाकर चलें। है गुज़ारिश कि सब मुस्कुराकर चलें ।।
देख पाएगी ना वो जनाज़ा मेरा । इसलिए उस गली को बचाकर चलें ।।
है ज़माने को शौक़-ए-तमाशा बहुत । आबरू अपनी आप ही छुपाकर चलें ।।
दिल हो बेजार तकलीफ़ हो ज़िंदगी । पर लबों पे तबस्सुम सजाकर चलें ।।Sudha Tripathi @Rakesh Srivastava@@d.r~ solanki~~ Dhanraj Gamare बाबा ब्राऊनबियर्ड
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