मेरे सब्र की इम्तिहाँ ली लोगो ने इस कदर, फिर भी मैं न झुंकी न कभी टूटी मगर, निकाल नुख्श कमियाँ ही गिनाते हैं, जाती हूँ मैं जिस भी डगर। स्वीकार करुँगी हर इलज.
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