मेरे सब्र की इम्तिहाँ ली लोगो ने इस कदर,
फिर भी मैं न झुंकी न कभी टूटी मगर,
निकाल नुख्श कमियाँ ही गिनाते हैं,
जाती हूँ मैं जिस भी डगर।
स्वीकार करुँगी हर इलजाम मैं भी,
साबित हो जाऊं मैं गलत अगर।
जिंदगी का उसूल ही ऐसा है,
जो चलता है सच्चाई के पथ पर,
अक्सर होता है उन्ही का मुश्किल भरा सफर।
..✍अनिता
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