औंधा पड़ा श्याम पट हो जैसे कल नन्ही सुबह, सुरज लिखेगी... सजा देगी झालर, बूटे औ पत्ते गीले हाथों से, कई रंग भरेगी.... खाली बचेंगे,कोई कोने भी नहीं दोनों एड़ी.
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