मेरे नसीब में किसी ने कद्र न की हमारी हम आंसू बहाते रहे
आज हम चेन से सो रहे हैं ओर वो आंसू बहा रहे हैं ।
तरसते रहे हम हाथ मिलाने को वो
हम से कतराते रहे आज हम खामोश हैं
वो पूरा कांधा दिए जा रहे हैं ।जिंदगी तन्हा रही
जहाँ गये ठोकर मिली तरसते रहे संग
साथ के लिये आज काफिला चला जा रहा हे ।
आज पता चला मौत तो हसीन हे लोग आ रहे हैं
पैर छू रहे हैं , हाथ जोड़ रहे हैं
हम तो यूं ही डरे जा रहे थे ।दो गज कफन चार काँधे
यही हे यात्रा हम तो यूं ही दौलत पर दौलत कमाए जा रहे थे ।
गाड़ी , बंगला सब छोड़ कर्म ले जा रहे है सब यहीं बांट कर
चार कांधों पर सवार जा रहे हैं ।
©Rihan khan
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