चले घर-द्वार राजनीति को अपनाने को। ललक थी अमेठी में भगवा लहराने को। पूर्ण हुआ हिदुसिता का ये सपना भी। पर जान की न्यूछाबर कर बैठे सच्चे हिंदुसितानी है श्रद्धांजि.
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