✍️आज की डायरी✍️
✍️जो मदहोश रहा करते हैं...✍️
ये तो आदत है जो तन्हाई में गुनगुना लेते हैं हम ,
महफ़िलों में तो अक़्सर ख़ामोश ही रहा करते हैं ।
हालात ऐसे हैं कि जुबाँ कुछ कहती भी नहीं अब ,
कुछ दर्द ऐसे हैं जो बस अल्फ़ाज़ों में रहा करते हैं।।
महक फैलानी हो ख़ुद की तो बुराई से क्या डरना ,
खिलते गुलाबों के संग अक़्सर काटें रहा करते हैं ।।
नशा ग़म का हो या ख़ुशी का खुद को डुबा लो उसमें ,
सवाल कम होते हैं उनसे जो मदहोश रहा करते हैं ।।
हैरान हैं लोग यहाँ कि उदासी में खुश कैसे रहता हूँ ,
हर जख़्म को छिपाकर हम बस हँसते रहा करते हैं ।।
✍️नीरज✍️
©डॉ राघवेन्द्र
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