तुझे हर रोज़ पा तो लेता था मैं
पर तुझे मैं अपना कहाँ बना पाया
चुरा तो लिया था मैंने तुझे सबसे
पर तुझे तुझी से कहाँ चुरा पाया
जो कमाल दिखा कर इस जोगी का दिल जीता था
वो कमाल मैं तुझे कहाँ दिखा पाया
तुझे हर रोज़ पा तो लेता था मैं
पर तुझे मैं अपना कहाँ बना पाया
आज सुबह वही बैठा दिखा तो मुझे
पर तेरे पास आकर, तेरा हाथ पकड़ कर
मैं तुझसे बात कहाँ कर पाया
तुझे हर रोज़ पा तो लेता था मैं
पर तुझे मैं अपना कहाँ बना पाया
आज फिर किसी ने मेरे नाम को तेरे नाम से जोड़ कर बुलाया
मैंने उसे भी बताया कि कैसे तुमने अपनी नफरत मे मेरा दिल है जलाया
पर ये बताते हुए मैं अपनी आँखो को भीगने से कहाँ रोक पाया
तुझे हर रोज़ पा तो लेता था मैं
पर तुझे मैं अपना कहाँ बना पाया
तूने भी इस दिल मे कैसा घर बनाया
छोड़ कर वो घर जा तो तू बहुत पहले ही गया है
पर तूने जैसे उस घर को सजाया था
वैसे आज तक कोई नहीं सजा पाया
तुझे हर रोज़ पा तो लेता था मैं
पर तुझे मैं अपना कहाँ बना पाया
तुझे हर रोज़ पा तो लेता था मैं
पर तुझे मैं अपना कहाँ बना पाया
"I don't want to talk about it."
"But why?"
"Because when it was the right time for you to understand, you just ignored me as if I'm a stranger to you. And now, your regrets are just a waste."
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