छोटे-छोटे टुकड़ो के पिस्ते,
नयाब हो गये।
दो टुकरो के काजू
बादशाह हो गये।
तमंचा लिए बदाम,
मंत्री हो गये।
किसमिस ताज महोत्सव में,
झूम रहे हैं।
मजे से मस्त हैं ,
होशोहवास में दुरूस्त हैं।
छुआरे चमचे बनकर,
धौंस जमाये हुए सख्त है।
और लगभग इनसे
लाचार व बेदर्द होकर
सिस्टम के आय से
लोट पोट में अस्त व्यस्त हैं।
बाकी सारी चीज़ें मोहरा हैं,
जो दिखता हरा - भरा है।
मनुष्य सिर्फ़ धरा पर गिरा,
एक नाचता हुआ लट्टू।
हाथ पर बने हुए टट्टू,
जो सिर्फ सत्यता से परे हैं।
पर सत्यता से दूर नहीं,
पर सिस्टम से मजबूर हैं।
©Ashish anupam
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