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2 Love
सौ दफ़ा आज़माकर भी,
तुझमे कुछ तो पराया है,
जिसको दिल छू न पाया है।
करोगे याद उसको क्यों, रहा ना काम जिससे अब।
वो पल कुछ और थे होते शुरू दिन रात उससे जब।
वही हो तुम, वही है वो, मगर सब कुछ नया सा है।
वफ़ा के सिलसिले हैं बन गए भूले से किस्से सब।
जगत कृष्णमय हुआ और रवि ने बांसुरी बजायी।
किरणों ने फिर रास रचा घर घर आवाज़ लगायी।
वंशी सुनकर दिनकर की हो पुलकित रम्या धरणी,
सकुचाए लोचन, स्मित आनन से मन में मुस्कायी।
त्याग तिमिर का वसन प्रकृति ने हरीतिमा है ओढ़ी।
कण कण भर उल्लास, तरंगिणि ने काया लचकायी।
थाप मृदंग सुनी मारुत की, झूमे कुसुमित उपवन।
जागा वैभव सकल, कृष्ण की जन्म अष्टमी आयी।
अंजलि राज
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