यूं ही दिल में ख्याल आया है,
लिख दूं कहानी इस मुफलिसी की।
तन्हा मन बड़ी बारीकी से रहगुजर होता है,
भला साथी नहीं कोई इस खलीसी की।।
यूं तो हमसफर मिलते हैं बहुत इस सफर में,
पर हर कोई तुझ सा अदावतगार नहीं मिलता।
मिलते हैं कई जंगजू इस जंग ए मैदान में,
पर सब से वो तुझ सा एतवार नहीं मिलता।।
यूं ही दिल में ख्याल आया है,
लिख दूं कहानी इस मुफलिसी की।
बड़ा जाहिल सा है एहतराम मेरा।
सजदा भी करता है गैरों का,
मगर शागिर्द ए शोहबत से भी है डरता ।
अब हलचल सी नहीं उठती दिल ए जमजम में,
की रूह ए रुखसत से भी है डरता।।
दरख़्त पुराना हो तो पत्ते भी इनायतदार नहीं होते।
हो अगर फर्श पे, अपने भी जमानतदार नहीं होते।।
कौन सोता है रातों को वर्जिश ले कर,
कि हिफाजतदारो के भी हफाजतगार नहीं होते।।
यूं ही दिल में ख्याल आया है,
लिख दूं कहानी इस मुफलिसी की।।
©Abhishek Singh Suryavanshi
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