"""#झलकारी_बाई"""
झलक उठे जब
हवाओं के झोंको से
बैठ पीठ घोड़े की
बात करे पवन से
थी वह झलकारी बाई
1857 की लड़ाई का
रुख़ मोड़ दिया
दुश्मन को तलवारों से
जा कर रण भूमि में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।
वह तो झांसी की झलकारी थी
झलकारी की झलक देखकर ,
वो दुश्मन भी कांप गये
जब उतरी वो रणभूमि में
गौरे भी थर-थर काँप गये
जमुना-कोख से पैदा हुई
भोजला गाँव में बड़ी हुई
जब आया संकट, झाँसी पर
रण भूमि में जाके खड़ी हुई
झलकारी को रण में भेज दिया
निज बौद्धिक-बल के बूते से
दुश्मन को धूल चटाई थी
अपने तलवार के वारो से
रण भूमि में थी रूकी हुई
अंग्रेज किये दांत खट्टे
निज अश्व हुआ जब जख्मी तो
कृपाण से दुश्मन काटा था
वो नारी थी ,पर यौद्धा थी
और वीरांगना कहलाई
मनु के वेश में लड़ी वो तब
फिर लौट के न वो घर आई
रानी झाँसी को बचा गई ,
ऐसी नारी थी झलकारी….
“देव” कवि का प्रणाम उन्हें
है धन्य झलक की झलकारी।।
#मनोज_देव
::::: जेपी नगर।।
©Manoj dev
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