वो माँ नौ महीने त्याग कर प्रसव वेदना स्वीकार कर लाई थी इस जहां में तुझे,
तू कैसे भूल गई चंद पलों की मोहब्बत के आगे कई वर्षों के उस माँ के दुख, दर्द , प्यार और त्याग को...
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तू निस्ठूर बन कैसे भूल गई उस भाई की राखी को,
तू कैसे भूल गई उस बाप के प्यारे हाथ को जिसे पकड़ कर तुम पहली बार चली,
तू कैसे भूल गई उस बाबुल की बगिया को जिसमे तू बनकर कली खिली,
अरे तुझे क्या मालूम उस खिलती कली को देखकर उनको कितनी खुशी मिली...
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तूने अपने स्वार्थ के खातिर घर में मातम फैलाया है,
अरे तू क्या जाने तेरे गम में बाप अब तक हलक से कोर निगल न पाया हैं...
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पिता की पगड़ी को लात मारकर उछाला हैं तूने,
माँ की ममता को बड़ी क्रूरता से कुचला है तूने,
कुटुंब के सम्मान को शौक से रौंदा है तूने,
अपने इश्क़ के खातिर उनके मुंह पर पैरों तले कीचड़ उछाला है तूने...
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बरसों के उनके त्याग समर्पण प्यार लाड़ दुलार का जरा भी ख्याल ना आया तुझे,
माँ बाप का सम्मान रौंद उस बाबुल को ठोकर मार कर घर छोड़ भागते जरा भी शर्म ना आई तुझे...
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अरे! थूकता हूं मैं, तेरे ऐसे इश्क पर जो पिता की सर से पगड़ी उछाल दें,
और थूकता हूं मैं, तेरे ऐसे प्रेमी पर जो तेरे यौवन पर ललचा कर तुझे भागने को उकसा दें,
और पूछना चाहता हूं मैं, उन तमाम लड़कियों से क्या ऐसी ही होती है..?
पापा की परियां जो बिना हथियार पापा के हजार टुकडे कर दें...
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मुकम्मल तूने प्यार नहीं घर से भागकर गुनाह किया है,
बिन हथियार ही अपने पिता का हृदय लहूलुहान कर उनका कत्ल किया है...
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उन्होंने बड़े नाजों से तुझे पलकों पर पाल-पोष कर बड़ा किया है,
तूने आज अपने प्रेमी संग मिलकर उन्हें ही बड़ी कठोरता से कटघरे में खड़ा किया है...
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और अब इल्ज़ाम लगाती हो मेरा बाप मुझे मारना चाहता है,
अरे! वह मरा हुआ बाप तुझे क्या मारेगा वह तो उसी दिन मर गया था जिस दिन तू घर से भाग गई थी...
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अब शर्म आती है उस बाप को तुझे बेटी कहते हुए जिसे तू जीते जी मार कर आई थी,
अब कैसे बताएं वह भाई तुझे अपनी बहन जिसके प्यार और स्नेह को बुलाकर तू घर से भाग आई थी,
अब वह माँ तुझे कैसे अपनी बेटी कहे जिसकी कोख तू लजा कर आई थी,
कैसे स्वीकार करें वह परिवार तुझे जिसकी सरेआम तू नाक कटा कर आई थी...
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अब हर दिल यही कहता है बेटी तुझसे भूल ये बड़ी हुई है,
तूने मंदिर की बनावटी सुंदरता के खातिर भगवान बदल लिया है,
तूने मां बाप को अपने ठोकर मार कर जीवन के हर मोड़ पर ठोकरों को अपना लिया है...
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वक़्त गवाह हैं जो-जो भी गई भागकर ठोकर ही खाती है,
अपनी गलती पर रो-रोकर अश्क बहा कर हुई भयानक भूल सोच कर अब पछताती है...
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तुम जैसी बेटियां तो आज मां-बाप, घर-परिवार को बेइज्जत करके भाग जाएगी,
पर कल को तुम्हारी इसी करतूत की वजह से न जाने कितनी बेटियां कोख में ही मार दी जाएगी...
©राहुल पटेल
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