वही हैं तेरे नयन-नक्श बगावत वाली
और वही दांतो तले पान और होंठो पे गाली
बोली उसकी धन्नो जैसी और चाल मलिका शैराबत वाली
अभी तो तुमने सुर्ख लाल होंठ देखे हैं उसके
अभी देखि ही नहीं उसकी नज़रे कयामत वाली
सलाम अपनी कलम से कलाम लिखती हूं
तेरी यादो मे सुबह मे सुबह-शाम लिखती हूं
चोरी-छिपे तुझको ये पयाम लिखती हूं
तुझ से गुफ़्तगू की ख्वाहिश है इसलिए ये ख़त सरेआम लिखती हूं
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