अंधेरा
तुझमे रसा है सुरूर मेरा, तुझमे वसा है सुकून मेरा,
तुम बिन न शांति मिलती, दूसरी न कोई तुम्हारे भांति मिलती, बंद कमरे में फैला है तेरा खौफ, पर मैं हुँ तुझसे पूरी वेखौफ, हर जगह सनाटा है छाया, इसने मुझको मुझसे मिलाया, घने साये से सरकती आवाजें है आती, जो मेरे मन को कभी-कभी बहुत डराती, तुझमे डूबी रहती हु, बस तुझको ही अपना कहती हुँ, मैंने खुदको तुझमे खोया, आँसुओ की बूंदो से है पलकों को भिगोया, तुझमे रसा है सुरूर मेरा, तुझमे वसा है सुकून मेरा।
©Saroj Bhatia
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