तुम्हें याद है वो सवाल ? पूछा था मैंने…
क्या होंगे हम साथ, अब से बाद दस साल ? पूछा था मैंने…
उठ कर तुम यूँ ही…चल दी थीं और रोका भी नहीं…
मैंने था…
हाँ था…तजुर्बा कम और पर था तो ना भरोसा ज़्यादा…
घर जाओगी नाराज़गी भर कर फिर फ़ोन पर…
कुछ आँसू दिल में भेद दोगी..
2 दिन बीते और मैं सहमा, न कोई फ़ोन और न ही..
तुम आयी…पहले तो न था कभी…
तुमने पूछा न हो एक दिन भी…मेरा कोई हाल…
फूल मालाओं और रोशनी से चकाचौंध...
देखा तुम्हारा घर अब सजने लगा था…
क्या जल्दी थी ऐसी और परवाह भी नहीं ?
ताउम्र न सही साथ...दे देतीं…न्यौता ही सही…
बंधन टूट गया…नहीं शिकायत की एक भी मैंने
आंख खुली और बीते 10 साल तुम ज़िंदा हो…
हो किसी और की पर चैन है देखा मैंने
-तुषार
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