श्वेता अग्रवाल 'ग़ज़ल'

श्वेता अग्रवाल 'ग़ज़ल'

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तोड़ - फोड़ करने का, है मुझको अधिकार उठाकर मारूंगा पत्थर, कौन करे पलटवार। चाहे जलाऊं रेल गाड़ी, या आग में झोंकू बस मेरी हिम्मत के आगे, झुक जाती है सरकार। परवाह देश सम्पत्ति की, मेरे ख्यालों में नहीं देश के लिये जान देना, इरादा ये नहीं स्वीकार लेकर डंडा हाथ में, उत्पात मचाता हर गली विद्रोही कहदो चाहे, हरदम लड़ने को तैयार। भविष्य की चिंता, हर पल कुछ ऐसे सताती है बिन मेहनत के मिल जाए, बंगला और कार। सरकारी नीतियों से भला,मेरा क्या भला होगा युवा हूँ मैं जोशीला, क्या करूँ बनकर समझदार भारत की आवाज़ बन, शर्मसार करता देश को अच्छी बातें समझ न आये,मैं पढ़ा लिखा गवार। ©श्वेता अग्रवाल 'ग़ज़ल'

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उठाकर मारूंगा पत्थर, कौन करे पलटवार।

चाहे जलाऊं रेल गाड़ी, या आग में झोंकू बस
मेरी हिम्मत के आगे, झुक जाती है सरकार।

परवाह देश सम्पत्ति की, मेरे ख्यालों में नहीं
देश के लिये जान देना, इरादा ये नहीं स्वीकार

लेकर डंडा हाथ में, उत्पात मचाता हर गली
विद्रोही कहदो चाहे, हरदम लड़ने को तैयार।

भविष्य की चिंता, हर पल कुछ ऐसे सताती है
बिन मेहनत के मिल जाए,  बंगला और कार।

सरकारी नीतियों से भला,मेरा क्या भला होगा
युवा हूँ मैं जोशीला, क्या करूँ बनकर समझदार

भारत की आवाज़ बन, शर्मसार करता देश को
अच्छी बातें समझ न आये,मैं पढ़ा लिखा गवार।

©श्वेता अग्रवाल 'ग़ज़ल'
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नववर्ष की बेला सुहानी, धरती माँ मुस्कायी है। हिंदुत्व ही पहचान जिसकी, आँखें वो हर्षायी है।। ©श्वेता अग्रवाल 'ग़ज़ल'

#श्वेता_अग्रवाल #writersofinstagram #नववर्ष #navratri2021 #Quotes  नववर्ष की बेला सुहानी, धरती माँ मुस्कायी है।
हिंदुत्व ही पहचान जिसकी, आँखें वो हर्षायी है।।

©श्वेता अग्रवाल 'ग़ज़ल'

पिंजरे में फँसे चुंहे की तरह, छटपटाती हैं ख्वाहिशें, जिम्मेदारी और मर्यादा की चार दीवारी में क़ैद होकर। पर ये चुंहे सिर्फ औरत का प्रतीक हो यह जरूरी नहीं, पुरुष को भी देखा है मैंने छटपटाते हुए। ©श्वेता अग्रवाल 'ग़ज़ल'

#श्वेता_अग्रवाल #श्वेता_ग़ज़ल #nojotohindi  पिंजरे में फँसे चुंहे की तरह,
छटपटाती हैं ख्वाहिशें,
जिम्मेदारी और मर्यादा की
चार दीवारी में क़ैद होकर।
पर ये चुंहे
सिर्फ औरत का प्रतीक हो
यह जरूरी नहीं,
पुरुष को भी देखा है मैंने
छटपटाते हुए।

©श्वेता अग्रवाल 'ग़ज़ल'
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