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AL Ibrahimi
Monday, 30 September | 04:27 pm
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मेरे यार भी कितने ज़हीन हैं. मेरे खामोशियों से...... मेरे दर्द का अंदाज़ा लगा लेते हैं. मुझे खिड़कियों से आते देख "इब्राहिमी" अपना दरवाज़ा लगा लेते हैं. शादाब अल इब्राहिमी (ज़हीन-sensible) ©AL Ibrahimi
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मैं इन हवाओं को भली भांति जानता हूं. यह हर रोज़ कि तरह,,, ज़रूर आज की शाम भी कुछ न कुछ यादें लेकर आएंगे. अजी कौन रोना चाहता उन गुज़रे पलों की याद में. पर शायर हूं "इब्राहिमी",,,, ज़रूर मेरे ही अल्फाज़ न चाहते हुए मुझे ही रुलाएंगे. ©AL Ibrahimi
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