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शायर, कवि Medical student
https://youtube.com/@shayariWithDK916
White त्योहार पर घर ना जाने का पीर कहूं या घाव कहूं... कुछ बनने की होड़ का धीर कहूं या छांव कहूं... जज़्बात जुबां जिंदगी दब गयी भौतिकता की होड़ में , शांत सभ्य सुशील बनूं या भाव कहूं|| ©Dhiraj Kumar
Dhiraj Kumar
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White जुगनुओं का विद्रोह कितना भी प्रबल हो जंगल नहीं जला सकता। ©Dhiraj Kumar
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White खो गये वो बचपन के दिन कहाँ, दिन की शुरुआत होती थी हठखेलियों से जहाँ। बारिश के बहाव में कागज के नाव चल जाते थे, दिवाली की सफाई में खोये खिलौने मिल जाते थे। मोल भाव के खेल में अपनत्व का मिलाप हो जाता था, तनिक परेशानी पर आसमान सिर उठाने वाला विलाप हो जाता था।। ©Dhiraj Kumar
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