इस मुल्क की आज़ादी, वीरों के शहादत से है,
गर मोहब्बत है तो अपनी मिट्टी, अपने भारत से है।
कोई करिश्मा कहें या उल्फ़त है ये वतन के लिए,
जां-बाज़ हैं जो हिन्द के, वो अपनी आदत से हैं।
ज़माने को हिलाने की जुरअत तो हम भी रखते हैं,
अब्र-ए-रहमत के मालिक हम अपनी सख़ावत से हैं।
हम ख़ामोश ज़रूर रहते हैं, पर ज़ुल्म नहीं सहते,
याद रखना! हम अमन-परस्त अपनी चाहत से हैं।
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