होता है जहां से आगाज़-ए-रंजिश
वो अफ़साना बाकी है अभी |
तुम्हें जल्दी होगी अंजाम की साकी
मेरा पैमाना बाकी है अभी |
उसे लगा के गुज़र गया
बिन बरसात के बादल की तरह |
अब कैसे बताएं रकीब को जाके
हमारा ज़माना बाकी है अभी |
ता उम्र जिसका इंतज़ार किया मैंने
हद से भी ज़्यादा ऐतबार किया मैंने |
कहीं मिल जाए तो कह देना
यह पागल दीवाना बाकी है अभी |
इस दौड़ में पीछे छूट गए
कुछ अपने मुझ से रूठ गए |
मुझे ग़लत समझ कर बैठे हैं
उन्हें मनाना बाकी है अभी |
कुछ राज़ हैं दिल में दबे हुए
अल्फाज़ शर्म से ढके हुए |
जो दिल से दिल तक पहुंच सके
इक नज़्म सुनाना बाकी है अभी |
दीन और मज़हब से हो के परे
मुसलसल जो मुझ को मयस्सर करे |
दुश्मनों के शहर में आज भी 'सेठी'
वो एक मैखाना बाकी है अभी |
हवा से बातें करना हमें अच्छा लगता है |
कभी बिना बात संवरना हमें अच्छा लगता है |
जहां जाने से बचपन की यादें ताज़ा होती हैं
उन गलियों से गुज़रना हमें अच्छा लगता है |
सुबह सुबह जब ओस की बूँदें घास पे गिरती हैं
तब गीली घास पे चलना हमें अच्छा लगता है |
यूँ तो तेज़ रफ़्तार से ज़िन्दगी चलती रहती है
कभी थोड़ा बहुत ठहरना हमें अच्छा लगता है |
जब लफ्ज़ नहीं मिलते 'सेठी' को तारीफ बयां करने के
ऐसे में फिर ज़बान फिसलना हमें अच्छा लगता है |
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